गोवर्धन पूजा से कौन से देवता नाराज़ थे?

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गोवर्धन पूजा से कौन से देवता नाराज़ थे?

गोवर्धन पूजा, जिसे अन्नकूट के नाम से भी जाना जाता है, भारत और नेपाल में हिंदुओं द्वारा मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण त्योहार है। यह त्योहार दिवाली के एक दिन बाद मनाया जाता है और भगवान कृष्ण द्वारा भगवान इंद्र पर विजय का प्रतीक है। हिंदू धर्म में, गोवर्धन पूजा का बहुत महत्व है। यह प्रकृति के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने और भगवान कृष्ण की दिव्य लीलाओं का स्मरण करने का त्योहार है। इस त्योहार के दौरान, भक्त गोवर्धन पर्वत की मिट्टी से एक संरचना बनाते हैं और उसकी पूजा करते हैं। वे भगवान कृष्ण को विभिन्न प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजन भी अर्पित करते हैं।

लेकिन क्या आप जानते हैं कि गोवर्धन पूजा से कौन से देवता नाराज़ थे? पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान इंद्र, जो स्वर्ग के राजा हैं, गोवर्धन पूजा से नाराज़ थे। ऐसा इसलिए था क्योंकि भगवान कृष्ण ने लोगों को भगवान इंद्र की पूजा करने के बजाय गोवर्धन पर्वत की पूजा करने के लिए प्रोत्साहित किया था। भगवान कृष्ण ने लोगों को यह समझाया कि गोवर्धन पर्वत ही उन्हें वास्तव में भोजन और आश्रय प्रदान करता है, इसलिए उन्हें उसी की पूजा करनी चाहिए। इससे इंद्र क्रोधित हो गए और उन्होंने गोकुल में भारी बारिश और तूफान भेजकर अपना बदला लेने का फैसला किया।

इंद्र का क्रोध और कृष्ण की लीला

तो दोस्तों, बात यह है कि गोवर्धन पूजा की कहानी में एक ट्विस्ट है! इंद्र देवता, जिन्हें बारिश और बादलों का राजा माना जाता है, वो थोड़े नाराज़ हो गए थे। क्यों? क्योंकि पहले लोग हर साल उनकी पूजा करते थे, लेकिन कृष्ण ने सबको गोवर्धन पर्वत की पूजा करने के लिए कहा। कृष्ण का कहना था कि गोवर्धन पर्वत ही उनकी गायों को चारा देता है और उनकी रक्षा करता है, इसलिए हमें उसी का सम्मान करना चाहिए। इंद्र को यह बात बिल्कुल पसंद नहीं आई। उन्हें लगा कि कृष्ण उनकी जगह ले रहे हैं और उनका सम्मान कम कर रहे हैं।

गुस्से में आकर इंद्र ने गोकुल गाँव पर भयंकर बारिश और तूफान भेज दिया। इतनी तेज़ बारिश हुई कि लोग डर गए और उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें। चारों तरफ पानी ही पानी भर गया और ऐसा लग रहा था कि पूरा गाँव डूब जाएगा। तभी कृष्ण ने अपनी दिव्य शक्ति का प्रदर्शन किया। उन्होंने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठा लिया! हाँ, आपने सही सुना। उन्होंने पूरे पर्वत को एक छाते की तरह उठा लिया और सारे गाँव को उसके नीचे बुला लिया।

गाँव के सभी लोग, बच्चे, बूढ़े, जवान, सब गोवर्धन पर्वत के नीचे सुरक्षित खड़े रहे। बारिश लगातार होती रही, लेकिन किसी को कोई नुकसान नहीं हुआ। कृष्ण ने सात दिनों तक पर्वत को उठाए रखा, और इंद्र अपनी पूरी शक्ति लगाने के बाद भी कुछ नहीं कर पाए। अंत में, इंद्र को अपनी हार माननी पड़ी। उन्हें समझ में आ गया कि कृष्ण साधारण बालक नहीं हैं, बल्कि भगवान का अवतार हैं। उन्होंने कृष्ण से माफी मांगी और बारिश बंद कर दी।

इस घटना के बाद, गोवर्धन पूजा का महत्व और भी बढ़ गया। यह त्योहार हमें सिखाता है कि हमें प्रकृति का सम्मान करना चाहिए और हमेशा भगवान पर भरोसा रखना चाहिए। यह हमें यह भी याद दिलाता है कि अहंकार और क्रोध हमेशा विनाशकारी होते हैं। तो अगली बार जब आप गोवर्धन पूजा मनाएं, तो इस कहानी को जरूर याद रखें!

गोवर्धन पूजा का महत्व

गोवर्धन पूजा का बहुत महत्व है, दोस्तों! यह सिर्फ एक त्योहार नहीं है, बल्कि यह हमें कई महत्वपूर्ण बातें सिखाता है। सबसे पहली बात तो यह है कि यह हमें प्रकृति के प्रति कृतज्ञ होना सिखाता है। गोवर्धन पर्वत हमें भोजन, पानी और आश्रय देता है। यह हमारी गायों को चारा देता है, जो हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। इसलिए, हमें हमेशा प्रकृति का सम्मान करना चाहिए और उसकी रक्षा करनी चाहिए।

दूसरी बात, यह त्योहार हमें भगवान पर विश्वास करना सिखाता है। जब इंद्र ने गोकुल पर भयंकर बारिश भेजी, तो लोग डर गए थे। लेकिन कृष्ण ने उन्हें बचाया। उन्होंने अपनी दिव्य शक्ति से गोवर्धन पर्वत को उठाया और सभी को सुरक्षित रखा। इससे पता चलता है कि भगवान हमेशा अपने भक्तों की रक्षा करते हैं, चाहे परिस्थितियां कितनी भी कठिन क्यों न हों। हमें हमेशा भगवान पर विश्वास रखना चाहिए और उनसे प्रार्थना करनी चाहिए।

तीसरी बात, गोवर्धन पूजा हमें अहंकार और क्रोध से दूर रहना सिखाती है। इंद्र को अपनी शक्ति पर बहुत घमंड था। उन्होंने सोचा कि वह कुछ भी कर सकते हैं। लेकिन कृष्ण ने उन्हें दिखा दिया कि भगवान की शक्ति के सामने उनका अहंकार कुछ भी नहीं है। हमें कभी भी अहंकार नहीं करना चाहिए और हमेशा विनम्र रहना चाहिए। क्रोध भी एक बहुत बुरी चीज है। क्रोध में हम गलत फैसले ले सकते हैं और दूसरों को नुकसान पहुंचा सकते हैं। इसलिए, हमें हमेशा क्रोध से बचना चाहिए।

गोवर्धन पूजा हमें यह भी सिखाती है कि हमें मिलजुलकर रहना चाहिए। जब कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को उठाया, तो सभी गाँव वाले उनके साथ थे। उन्होंने एक दूसरे की मदद की और एक दूसरे को प्रोत्साहित किया। इससे पता चलता है कि एकता में शक्ति होती है। जब हम मिलजुलकर काम करते हैं, तो हम कुछ भी हासिल कर सकते हैं। इसलिए, हमें हमेशा एक दूसरे के साथ मिलकर रहना चाहिए और एक दूसरे की मदद करनी चाहिए।

गोवर्धन पूजा कैसे मनाएं

गोवर्धन पूजा मनाने के कई तरीके हैं, दोस्तों! यह एक बहुत ही मजेदार और उत्साहपूर्ण त्योहार है। सबसे पहले, आपको गोवर्धन पर्वत की मिट्टी से एक संरचना बनानी चाहिए। आप इसे अपने घर के आंगन में या किसी मंदिर में बना सकते हैं। फिर, आपको इसे फूलों, पत्तियों और अन्य सजावटी वस्तुओं से सजाना चाहिए। आप इस पर रंग भी भर सकते हैं।

दूसरा, आपको भगवान कृष्ण को विभिन्न प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजन अर्पित करने चाहिए। आप उन्हें मिठाई, फल, सब्जियां और अन्य खाद्य पदार्थ अर्पित कर सकते हैं। आपको उन्हें दूध, दही और मक्खन भी अर्पित करना चाहिए। यह माना जाता है कि भगवान कृष्ण को ये चीजें बहुत पसंद हैं।

तीसरा, आपको गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करनी चाहिए। परिक्रमा का मतलब है कि आपको गोवर्धन पर्वत के चारों ओर घूमना चाहिए। यह माना जाता है कि परिक्रमा करने से आपके पाप धुल जाते हैं और आपको आशीर्वाद मिलता है।

चौथा, आपको भजन और कीर्तन गाने चाहिए। भजन और कीर्तन भगवान की स्तुति में गाए जाने वाले गाने हैं। यह माना जाता है कि भजन और कीर्तन गाने से भगवान प्रसन्न होते हैं और आपको आशीर्वाद देते हैं।

पांचवां, आपको गरीबों और जरूरतमंदों को दान देना चाहिए। दान देना एक बहुत ही अच्छा काम है। यह माना जाता है कि दान देने से आपको पुण्य मिलता है और आपके जीवन में सुख और समृद्धि आती है।

तो दोस्तों, ये कुछ तरीके हैं जिनसे आप गोवर्धन पूजा मना सकते हैं। यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण त्योहार है और हमें इसे पूरे उत्साह और भक्ति के साथ मनाना चाहिए।

गोवर्धन पूजा से जुड़ी अन्य कथाएं

दोस्तों, गोवर्धन पूजा से जुड़ी और भी कई मजेदार कहानियाँ हैं! एक कहानी में बताया गया है कि कैसे भगवान कृष्ण ने इंद्र को सबक सिखाया। जब इंद्र ने गोकुल पर भारी बारिश भेजी, तो कृष्ण ने अपनी दिव्य शक्ति से गोवर्धन पर्वत को उठाया और सभी को सुरक्षित रखा। इंद्र को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने कृष्ण से माफी मांगी। कृष्ण ने उन्हें माफ कर दिया और बारिश बंद कर दी।

एक अन्य कहानी में बताया गया है कि कैसे एक गरीब महिला ने भगवान कृष्ण को भोजन अर्पित किया। उस महिला के पास केवल थोड़ा सा दही और चावल था। लेकिन उसने वह सब भगवान कृष्ण को अर्पित कर दिया। भगवान कृष्ण उस महिला की भक्ति से बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने उसे आशीर्वाद दिया।

एक और कहानी है जो गोवर्धन पूजा से जुड़ी है, जो राजा अंबरीश की कहानी है। राजा अंबरीश एक बहुत ही धार्मिक राजा थे और वे भगवान विष्णु के बहुत बड़े भक्त थे। एक बार, उन्होंने एकादशी का व्रत रखा। एकादशी का व्रत एक बहुत ही कठिन व्रत होता है और इसे बहुत ही सावधानी से करना होता है। राजा अंबरीश ने व्रत के सभी नियमों का पालन किया। जब व्रत समाप्त होने का समय आया, तो एक ऋषि उनके पास आए और उनसे भोजन मांगा। राजा अंबरीश ने ऋषि को भोजन देने के लिए तैयार हो गए, लेकिन उन्हें याद आया कि उन्हें पहले व्रत तोड़ना है। उन्होंने ऋषि से थोड़ी देर इंतजार करने के लिए कहा, लेकिन ऋषि ने इनकार कर दिया। राजा अंबरीश दुविधा में पड़ गए। उन्होंने सोचा कि अगर वे पहले भोजन करते हैं, तो वे व्रत के नियमों का उल्लंघन करेंगे, और अगर वे ऋषि को भोजन नहीं देते हैं, तो वे उनका अपमान करेंगे। अंत में, उन्होंने व्रत तोड़ने का फैसला किया और ऋषि को भोजन दिया। भगवान विष्णु राजा अंबरीश की भक्ति से बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने उन्हें आशीर्वाद दिया।

ये कहानियाँ हमें सिखाती हैं कि हमें हमेशा भगवान पर विश्वास रखना चाहिए, हमें गरीबों और जरूरतमंदों की मदद करनी चाहिए, और हमें हमेशा अपने धर्म का पालन करना चाहिए।

तो दोस्तों, गोवर्धन पूजा एक बहुत ही महत्वपूर्ण त्योहार है और हमें इसे पूरे उत्साह और भक्ति के साथ मनाना चाहिए। यह हमें प्रकृति के प्रति कृतज्ञ होना, भगवान पर विश्वास करना, अहंकार और क्रोध से दूर रहना, और मिलजुलकर रहना सिखाता है। तो अगली बार जब आप गोवर्धन पूजा मनाएं, तो इन बातों को जरूर याद रखें!